आखिर क्यों कहते है गुलाब को फूलों का राजा

फूलों का राजा, खूबसूरती (सौंदर्य) और महक की दुकान, प्यार का प्रतीक माना जाने वाला गुलाब शर्त पर हर हिस्से, हर देश और राष्ट्र द्वारा पसंद किया जाता है। हिन्दू इतिहास की बात करें तो सुनने में आता है कि ब्रह्मा और विष्णु इस बात को लेकर बहस कर रहे थे कि कमल का फूल ज़्यादा खूबसूरत है या गुलाब का। विष्णु गुलाब को खूबसूरत कहते थे और ब्रह्मा कमल को। ब्रह्मा ने पहले गुलाब नहीं देखा था पर देखने के बाद उनका विचार तो बदला ही साथ ही विष्णु के खातिर दुल्हन की सृजन की जिसे उन्होंने लक्ष्मी कहा और लक्ष्मी के बारे में विशेषता यह थी कि उसे बड़ी और छोटी गुलाब की पत्तियों से रचा गया था।

फुल वे गुलाब देया
कित्थे तेनु रखां सांभ के
मेरे सजनां दे बाग देया

यूनान के लोग रोम वासियों ने गुलाब को बहुत ही महत्ता बख्शी है। रोम के लोग अपने भोजन करने वाले कमरों की छत गुलाब से श्रृंगारते है। उनका मानना था कि आये हुए मेहमान गुलाब के फूलों को देखकर यह याद रखें कि खाने के दौरान की गई बातों के भेद बाहर जाकर नहीं खोलने है। अरबी लोगों का यह मानना था कि सभी गुलाब का रंग पहले सफेद होता था पर एक रात जब बुलबुल की मुलाकात सफेद गुलाब के साथ हुई तो वह प्यार के रंग में रंगी गई थी। उस मुलाकात के बाद बुलबुल की आवाज़ सुरमई हुई और एक दिन गुलाब का कांटा उसके दिल में लग गया जिसके बाद गुलाब लाल-गुलाब हो गया। गुलाब में कुदरत ने बेशुमार रंग भरे हैं, नीले और काले के बिना। कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने खोज द्वारा नीला गुलाब तैयार कर लिया गया है। मार्किट में बिकने वाला काला गुलाब असल में अत्यंत गहरा नाभि रंग का होता है। असल में काला गुलाब नहीं होता बल्कि लोक गीत के बोल भी साबित करते हैं:

काले रंग दा गुलाब कोई ना
तेरियां किताबां विच वे
मेरी गल्ल दा जवाब कोई ना

dark blue rose

गुलाब के साथ मौजूद काँटों के बारे में भाई वीर सिंह जी ने अपनी कविता के ज़रिये ऐसे व्याख्या की है:

फुल गुलाब तों किसे पुछिया
अवे कोमलता दे साई!
इस सुहपन इस सुहल सुहज नु
है क्यूँ कंडियां बीज लाई?”
“सत अलसरी सुर विच सोहने
हस किहा: “खबर नहीं मैनु
तोड़ नहीं दी फट्टी भावे,
मिरे मौला ने लिख लाई

गुलाब का इतिहास लाखों साल पुराना है, दक्षिण साइबेरिया की कबर में से एक चांदी का तगमा मिला जिसके ऊपर गुलाब की तस्वीर उकरी हुई और वह तगमा 7000 साल पुराना है। मैसोपोटोमिया की संस्कृति से लेकर शेक्सपियर के लेख तक गुलाब का ज़िकर आता है। नेपोलियन की पत्नी गुलाब की बहुत दीवानी थी। उसने पैरिस के अपने बगीचे में अनेक किस्में लगाई हुई थी। नेपोलियन अपने अफसरों को गुलाब के बोरे भरकर देता था कि वाइन में पत्तियां उबालने पर यह जख्मों को ठीक करने में सहायक होती हैं। सोलहवीं शताब्दी में जब मुगल बादशाह बाबर भारत आये तो वह गुलाब ऊंट के ऊपर रखकर लाये थे और उसकी चारों बेटी के नाम गुलाब से संबंधित थे: गुल-चेहरा, गुल-रुख, गुल-बदन और गुल रंग। मुगल बगीचों में भले कश्मीर का शालीमार बाग़ हो या फिर आगरा का ताज महल सभी में गुलाब को प्राथमिकता दी गई। मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी नूरजहां ने गुलाब की पत्तियों वाले पानी में नहाने के समय पानी की सतह के ऊपर तेल की बूँदें देखी और उसे अलग कर लिया। बाद में उसे इत्र-ए-जहांगीर का नाम दिया।

rose 1

भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में रोज़ गार्डन बहुत ही महत्ता रखते हैं और बहुत ही शोंक के साथ संभाले और देखे जाते हैं। अमरीका और इंग्लैण्ड के लोगों ने गुलाब को राष्ट्रीय फूल का दर्जा दिया है। जर्मनी में हिलशाइम नामि गिरजाघर की दीवार के साथ 1000 साल पुराना पौधा अभी भी लगा हुआ है।

इत्र की तरह अर्क, गुलकंद और फूल जिनको अंग्रेज “रोज़ हिप” के नाम से पुकारते हैं: विश्व प्रसिद्ध है। रोज़ हिप में विटामिन-सी की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। रोज़ आयल मतलब तेल की मांग पूरे संसार में बहुत ज़्यादा है। गुलाब अनेक मनुष्य बिमारियों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। कट पर प्रयोग किये जाने वाले गुलाब का व्यापार पूरे विश्व में करोड़ों रूपये में होता है।

rose garden

पंजाब में गुलाब बहुत वृद्धि करते हैं। देसी गुलाब को पुराने समय से लगाया जा रहा है, पर समय के चलते अनेक किस्में विकसित हो चुकी है। हमारे वातावरण के अनुसार अक्तूबर महीने से लेकर मार्च तक गुलाब के पौधे लगाए जाते हैं। अच्छे फूल प्राप्त करने के लिए गुलाब की कटाई-छटाई ज़रूरी होती है, जिसका उपयुक्त समय सितंबर से अक्तूबर महीने तक होता है। गुलाब की वृद्धि बीज, कलम, दाब, गुट्टी, पौध आदि अनेकों ढंगों से की जा सकती है। गुलाब की महक और खूबसूरती का पूरा संसार दीवाना है। इसकी खुश्बू/महक के बारे में प्रो.मोहन सिंह जी ने बहुत खूबसूरत लिखा है:

इक दिन मैं फुलवाड़ी विच्चों,
लंघ रिहा सी इकल्ला,
कंडे इक गुलाबी फूल दे,
बह गए फड़ के पल्ला।
ना कर एड़ी काहली राहियां,
पल दा पल ख्लोवीं,
खुशबुयां दे ढोये बाझों,
असां जान नहीं देना मल्ला

डा. बलविंदर सिंह लक्खेवाली
9814239041

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